आईना पर चन्द अश’आर
न टूटकर ये फिर जुड़ा कभी
मिरा ये दिल था आईना कोई
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आईना टुकड़ों में बिखरा है यारो
फिर कहीं दिल कोई टूटा है यारो
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आईना देख, हैरां हूँ मैं आज फिर
शख़्स ये अजनबी,कौन है रू-ब-रू
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आई’ना टूटकर जिस तरह बिखरा है
क्या कभी आपका दिल भी यूँ टूटा है
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देखकर आईना, याद फिर आई ना
टूटकर हिज़्र में, रो पड़ा आई’ना*
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*अन्तिम शे’र में दूसरी पँक्ति के अंत में “आई’ना” बहुअर्थी है। यहाँ
आई’ना— दर्पण (आई’ना) के लिए भी है और विरहा में डूबे (टूटे) प्रेमी के
लिए (आई ना) भी।
Swati chourasia
10-Mar-2022 06:16 PM
Very nice 👌
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Seema Priyadarshini sahay
10-Mar-2022 05:28 PM
बहुत खूबसूरत
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Gunjan Kamal
09-Mar-2022 01:44 PM
बहुत खूब
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